Aligarh Muslim University: जानिये एक मदरसे से यूनिवर्सिटी कैसे बन गया अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय

Aligarh Muslim University: सपनों से हकीकत तक का सफर Aligarh Muslim University (AMU) न सिर्फ उत्तर प्रदेश बल्कि पूरे देश ...
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Aligarh Muslim University: सपनों से हकीकत तक का सफर

Aligarh Muslim University (AMU) न सिर्फ उत्तर प्रदेश बल्कि पूरे देश और दुनिया में अपनी पहचान रखती है। यह भारत के सबसे मशहूर विश्वविद्यालयों में से एक है। इसकी नींव सर सैयद अहमद खान ने करीब डेढ़ सौ साल पहले 1873 में रखी थी। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस यूनिवर्सिटी को बनाने के लिए सर सैयद को कितनी मेहनत करनी पड़ी? उन्होंने इसके लिए घर-घर जाकर चंदा तक मांगा। आइए जानते हैं इस यूनिवर्सिटी की दिलचस्प कहानी। उस से पहले जानते हैं की कैसे सर सैयद अहमद ख़ान के बारे जिन्होंने इसको सींचा।

सर सैयद अहमद खान: एक नजर में

सर सैयद का जन्म 17 अक्टूबर 1817 को दिल्ली में हुआ था। उनका परिवार अमीर और रसूखदार था। 22 साल की उम्र में उन्होंने अपने भाई की पत्रिका में बतौर संपादक काम शुरू किया। उनके परिवार का मुगल दरबार से अच्छा रिश्ता था, फिर भी उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी में क्लर्क की नौकरी की। सर सैयद बहुत होशियार थे और उन्होंने ऊंची पढ़ाई भी की। इसकी वजह से 1841 में वे मैनपुरी में जज बन गए और बाद में 1870 में बनारस में सिविल जज बने।

ऑक्सफोर्ड-कैम्ब्रिज जैसा सपना : Aligarh Muslim University

Aligarh Muslim University: जज की नौकरी के दौरान सर सैयद लंदन गए। वहां की पढ़ाई की व्यवस्था, खासकर ऑक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज जैसी यूनिवर्सिटियों ने उन्हें बहुत प्रभावित किया। उन्होंने सोचा कि भारत में भी ऐसी यूनिवर्सिटी होनी चाहिए। लेकिन उस समय अंग्रेजी सरकार में किसी भारतीय का यूनिवर्सिटी खोलना आसान नहीं था। फिर भी, उन्होंने हार नहीं मानी। 9 फरवरी 1873 को उन्होंने एक कमेटी बनाई और अलीगढ़ में एक छोटा सा मदरसा शुरू किया, जिसका नाम था “मदरसतुलउलूम”।

मदरसे से यूनिवर्सिटी तक का सफर : Aligarh Muslim University

जब सर सैयद ब्रिटिश नौकरी से रिटायर हुए, तो उन्होंने इस मदरसे को “मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज” में बदल दिया। वे खुद भी वहां अंग्रेजी पढ़ाने लगे। लेकिन कॉलेज चलाने के लिए पैसों की सख्त जरूरत थी। इसके लिए उन्होंने चंदा जुटाने का फैसला किया। एक बार तो पैसे इकट्ठे करने के लिए उन्होंने “लैला-मजनू” नाटक का आयोजन किया। मजेदार बात ये है कि नाटक में लैला का किरदार निभाने वाला कलाकार बीमार पड़ गया, तो सर सैयद खुद लैला बन गए!

घर-घर जाकर मांगा चंदा : Aligarh Muslim University

कॉलेज के लिए पैसों की कमी को पूरा करने के लिए सर सैयद ने लोगों से चंदा मांगा। कई बार लोगों ने इसका विरोध भी किया। एक बार जब वे चंदा मांग रहे थे, तो एक शख्स ने उन पर बहुत गुस्सा किया। लेकिन सर सैयद इतने शांत थे कि बिना कुछ बोले वहां से चले गए। उन्होंने हंसते हुए कहा कि ये चंदा कॉलेज में शौचालय बनाने के लिए है। उनकी मेहनत और लगन रंग लाई।

सपना हुआ पूरा

1920 में उनकी सारी कोशिशों के बाद वह कॉलेज “अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी” (Aligarh Muslim University) बन गया। यह एक ऐसी उपलब्धि थी, जो इतिहास में हमेशा याद रखी जाएगी। सर सैयद का सपना सच हुआ और आज एएमयू देश के सबसे बड़े शिक्षण संस्थानों में से एक है।

तो दोस्तों, ये थी सर सैयद अहमद खान की मेहनत और जज्बे की कहानी। एक छोटे से मदरसे से शुरू हुआ सफर आज दुनिया भर में मशहूर यूनिवर्सिटी बन गया। क्या आपको भी अपने सपनों के लिए ऐसी मेहनत करने का हौसला मिलता है?

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