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Mirzapur: ‘कुंवारों का गाँव’ के नाम से जाना जाता है मिर्जापुर का ये गाँव, वजह ऐसी कि आप भी सोच में पड़ जाएंगे

Mirzapur: मिर्जापुर का नाम तो सबने ही सुना होगा, सुनोगे कैसे नहीं जहाँ कट्टा-तमंचा और भौकाल की बात हो वहाँ कान अपने आप खड़े हो जाते हैं। खैर वो तो हो गई फिल्मी बात अब जानिये धरातल की बात। जी हाँ, मिर्जापुर में एक ऐसा गांव भी है जहाँ लोग आज भी अपनी लड़कियों का ब्याह उस गाँव में नहीं कराते हैं। इसलिए अब वो गाँव ‘कुंवारों का गाँव’ के नाम से जाने जाना लगा है। आइये बताते हैं इसकी वजह के बारे में
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मिर्जापुर (Mirzapur) जिले का एक ऐसा गांव है जिसे लोग “कुंवारों का गांव” कहते हैं. इसकी वजह जानकर आप भी हैरान हो जाएंगे. इस गांव का नाम है लहुरियादह, जहां आजादी के 76 साल बाद भी लोग पीने के पानी के लिए संघर्ष कर रहे हैं. यहां पानी की किल्लत इतनी गंभीर है कि इस गांव में कोई अपनी बेटी की शादी करना नहीं चाहता.

Mirzapur: पानी की समस्या

लहुरियादह गांव मिर्जापुर मुख्यालय से करीब 70 किलोमीटर दूर स्थित है, जहां पानी की समस्या पिछले कई दशकों से बनी हुई है. यहां के ग्रामीणों को पीने के पानी के लिए रोज़ाना तड़के सुबह 3 बजे उठना पड़ता है. फिर वे 2 किलोमीटर पैदल चलकर पहाड़ी से नीचे उतरते हैं और झरने के पास पहुंचकर बारी-बारी से पानी भरने का इंतजार करते हैं.कड़ी मेहनत और लंबे इंतजार के बाद उन्हें मुश्किल से एक बाल्टी पानी मिलता है.

हर घर जल योजना की असफलता

कुछ समय पहले “हर घर जल योजना” के तहत गांव में पाइपलाइन बिछाकर घरों में नल लगाए गए थे. कुछ दिन तक तो पानी आया, लेकिन जनवरी 2023 से यह सप्लाई भी रुक गई. इसके बाद से ग्रामीणों को फिर से झरने पर निर्भर होना पड़ा है. पहले टैंकर से पानी की सप्लाई होती थी, लेकिन अब यह भी बंद हो गई है.

पानी की कमी के कारण शादी में अड़चन

गांव की इस पानी की समस्या के कारण यहां रहने वाले लड़कों की शादी भी नहीं हो पा रही है. बाहरी गांवों के लोग अपनी बेटियों की शादी लहुरियादह में करने से हिचकते हैं, क्योंकि उन्हें डर है कि उनकी बेटियों को यहां आकर पानी के लिए रोज़ संघर्ष करना पड़ेगा.

Mirzapur: पढ़ाई और बच्चों पर असर

पानी की कमी का असर बच्चों की पढ़ाई पर भी पड़ रहा है. कई बार छोटे बच्चे भी पानी लाने के लिए झरने तक जाते हैं, जिससे उनकी पढ़ाई बाधित होती है.सुनीता नाम की एक स्थानीय महिला ने बताया कि महिलाएं सुबह से ही पानी के जुगाड़ में लग जाती हैं. यह समस्या गांव की महिलाओं के लिए बड़ी चुनौती बन गई है.

नेताओं के वादे और ग्रामीणों की नाराजगी

ग्रामीणों का कहना है कि कई चुनावों से नेता उन्हें पानी की समस्या हल करने का वादा करते आ रहे हैं, लेकिन आज तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया.विधायक और सांसद को फिर से चुना गया, परंतु समस्या वही की वही है. ग्रामीणों का आरोप है कि सही काम करने वाले अधिकारियों को ज्यादा समय तक रहने नहीं दिया जाता.

प्रशासन का अस्थायी प्रयास

साल 2023 में पूर्व जिलाधिकारी दिव्या मित्तल के प्रयासों से 29 अगस्त को पहली बार नल से जल आपूर्ति की गई थी. लेकिन उनके जाने के बाद यह व्यवस्था फिर ठप हो गई. ग्रामीणों का कहना है कि इस समस्या के कारण यहां जीवन कठिन हो गया है, और लोग अपनी बेटियों की शादी यहां नहीं करना चाहते.

लहुरियादह गांव की पानी की समस्या ने इसे “कुंवारों का गांव” बना दिया है. यह समस्या न सिर्फ लोगों की रोज़मर्रा की जिंदगी पर असर डाल रही है, बल्कि इसने गांव की सामाजिक स्थिति को भी प्रभावित किया है.चुनावों में बार-बार वादे किए जाते हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर आज तक कोई ठोस समाधान नहीं निकला.

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