Bihar election: 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन सरकार बनाने से महज़ चंद कदम दूर रह गया था। अब, पांच साल बाद जब राज्य में एक बार फिर चुनावी रण तैयार हो रहा है, चुनाव आयोग की ओर से शुरू की गई विशेष मतदाता सूची पुनरीक्षण प्रक्रिया ने महागठबंधन को एक नया, प्रभावशाली राजनीतिक हथियार थमा दिया है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह मुद्दा अब महागठबंधन के लिए किसी “वरदान” से कम नहीं है। मतदाता सूची से नाम कटने की आशंका और इससे जुड़ी सरकारी सुविधाओं के नुकसान का डर विपक्ष ने जनता के बीच बड़े पैमाने पर उठाना शुरू कर दिया है। उनका मानना है कि इससे न सिर्फ सत्ता पक्ष को घेरने का मौका मिल रहा है, बल्कि चुनाव से पहले मतदाताओं से सीधा भावनात्मक जुड़ाव भी बन रहा है।
तेजस्वी का वार: नाम हटे तो खत्म होंगे सभी सरकारी लाभ
Bihar Election: विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव इस मुद्दे को हर रोज़ उठाते नज़र आ रहे हैं। उन्होंने अब तक इस विषय पर छह प्रेस कॉन्फ्रेंस कर डाली हैं, जबकि सत्ताधारी NDA अब तक चुप्पी साधे हुए है। तेजस्वी हर मंच से जनता को आगाह कर रहे हैं कि “पहले आपका नाम मतदाता सूची से हटेगा, फिर एक-एक कर सभी सरकारी योजनाओं से आपको बाहर कर दिया जाएगा।”
RJD का दावा: गरीबों का राशन, मकान, पेंशन सब खतरे में: Bihar Election
विशेष मतदाता सूची पुनरीक्षण (SIR) को लेकर राष्ट्रीय जनता दल (RJD) ने चुनाव आयोग और सरकार पर सीधा निशाना साधा है। पार्टी का कहना है कि मतदाता सूची से नाम कटने का असर सिर्फ वोट देने के अधिकार पर नहीं, बल्कि गरीबों को मिलने वाली तमाम कल्याणकारी योजनाओं पर भी पड़ेगा।
राजद प्रवक्ता चितरंजन गगन ने मंगलवार को कहा कि, “अगर मतदाता सूची से किसी का नाम हट गया, तो वह हर सरकारी सुविधा से वंचित हो जाएगा।” उन्होंने खास तौर पर प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (PMGKAY) का जिक्र करते हुए बताया कि 10.41 करोड़ की आबादी में से करीब 8.71 करोड़ लोग यानी 84% बिहारवासी इससे लाभान्वित हो रहे हैं। नाम कटने पर इन्हें 5 किलो मुफ्त राशन, प्रधानमंत्री आवास, पेंशन और दूसरी योजनाओं का लाभ नहीं मिलेगा।
सोशल साइंटिस्ट बोले – EC की प्रक्रिया में पारदर्शिता नहीं
Bihar election News: AN सिन्हा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज़ के सामाजिक वैज्ञानिक बी एन प्रसाद ने सवाल उठाया कि क्या वाकई में बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) घर-घर जाकर फॉर्म बाँट और इकट्ठा कर रहे हैं? मेरे घर अब तक कोई BLO नहीं आया। ज़मीनी स्तर से जो आवाज़ें आ रही हैं, वो भरोसेमंद नहीं लगतीं।
पटना कॉलेज के पूर्व प्राचार्य प्रो. एन के चौधरी ने विपक्ष के विरोध को “थियेटर ऑफ द एब्सर्ड” यानी बेमतलब का ड्रामा कहा। हालांकि उन्होंने माना कि इलेक्शन कमीशन को ज्यादा वक्त देना चाहिए था साथ ही और दस्तावेजों की संख्या बढ़ानी चाहिए थी।
2015 जैसे सियासी हालात? ‘आरक्षण’ की तर्ज पर अब ‘नाम कटवाओ – हक गँवाओ’ का वार
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि बिहार में एक बार फिर 2015 जैसे हालात बनते दिख रहे हैं। जिस तरह उस समय आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के आरक्षण नीति की समीक्षा संबंधी बयान ने एनडीए की चुनावी स्थिति कमजोर कर दी थी, उसी तरह अब महागठबंधन मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण (SIR) को बड़ा चुनावी हथियार बना रहा है। उस वक्त राजद प्रमुख लालू यादव ने इसे ‘कोटा खत्म’ की साजिश बताया था, अब यह ‘नाम कटवाओ – हक गँवाओ’ का नारा गूंज रहा है।
विश्लेषकों का कहना है कि जिस तरह 2015 में आरक्षण की बहस ने चुनावी समीकरण बदल दिए थे, उसी तरह इस बार मतदाता सूची से नाम गायब होने का डर गरीब और वंचित तबकों में गहरी बेचैनी पैदा कर रहा है और विपक्ष उसी बेचैनी को हवा देकर सियासी जमीन मजबूत करने में जुटा है।
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