उत्तर प्रदेश का एक एक जिला है, जौनपुर जो गोमती नदी के किनारे बसा, अपने समृद्ध इतिहास और सांस्कृतिक धरोहरों के लिए जाना जाता है. ये शहर न केवल अपने पुराने ऐतिहासिक इमारतों का गढ़ के लिए जाना जाता है, बल्कि यहां की गंगा-जमुनी तहज़ीब भी इसे एक अनोखी पहचान देती है. अक्सर जौनपुर का नाम सुनते ही मन में एक ऐसा शहर उभरता है, जहां हिन्दू और मुस्लिम स्थापत्य शैलियों का अद्भुत संगम दिखता है. जौनपुर का इतिहास जितना रोचक है, उतना ही प्रेरणादायक भी. आईये आपको बताते हैं इस शहर के गौरवशाली इतिहास और उसकी मुख्य विशेषताओं पर..
जौनपुर का इतिहास : History of Jaunpur
कहा जाता है कि जौनपुर की शुरुआत 11वीं शताब्दी में हुई थी. हालांकि, इस समय जौनपुर का एक बड़ा हिस्सा गोमती नदी की बाढ़ में बह गया था. लेकिन इस शहर का भाग्य भी बदला जब फिरोज़ शाह तुगलक ने 1359 ई. में इसे पुनर्निर्मित किया. इसी समय में जौनपुर मध्यकालीन भारत में शर्की शासकों की राजधानी बना. शर्की शासकों ने यहां पर कई शानदार भव्य इमारतों का निर्माण कराया, जो आज भी यहां के स्थापत्य कला का बेहतरीन उदाहरण पेश करती हैं. जिन्हें देखकर मन ताजा हो जाता है.
जौनपुर: ‘पूर्व का शिराज’ और ‘शिराज ए हिन्द’
भारत के पूर्व या यूं कहें कि अपने यूपी के पूर्वांचल में होने के वजह से जौनपुर को ‘पूर्व का शिराज’ के साथ ‘शिराज ए हिन्द’ भी कहा गया. यह नाम इसे इसकी खूबसूरत इमारतों और सांस्कृतिक धरोहरों की वजह से मिला.
यवनपुर से जौनपुर
बहुत पहले इस शहर का असली नाम ‘यवनपुर’ था, जिसे कन्नौज के शासक यशोवर्मन ने रखा था. लेकिन 14वीं सदी में फिरोज़ शाह तुगलक ने इसका नाम बदलकर ‘जौनपुर’ रखा. कहा जाता है कि यह नाम उन्होंने अपने चचेरे भाई मुहम्मद बिन तुगलक की याद में रखा, जिनका असली नाम ‘जौना खां’ था.
प्राचीन काल और जमदग्निपुरी से जौनपुर
जौनपुर को शिक्षा की नगरी भी कहा जाता है. यहां प्राचीन काल में ऋषि-मुनियों का निवास था. महर्षि दधिची, जिनकी अस्थियों से देवराज इंद्र ने वज्र का निर्माण कराया था, यहीं के निवासी थे. हिन्दू धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, वृतासुर नामक राक्षस को पराजित करने के लिए इंद्र ने महर्षि दधिची की अस्थियां प्राप्त की थीं. इसके अलावा, महर्षि जमदग्नि के नाम पर इस शहर का नाम जमदग्निपुरी पड़ा, जो बाद में जौनपुर के रूप में जाना गया.
शर्की सल्तनत का स्वर्णकाल
शर्की शासकों के शासनकाल में जौनपुर का विकास अपने चरम पर था. 14वीं सदी के दौरान, शर्की सल्तनत ने जौनपुर में कई महत्वपूर्ण इमारतों और स्थापत्य कला का निर्माण किया. यहां के शाही पुल और अटाला मस्जिद जैसी संरचनाएं इस सुनहरे काल की गवाह हैं. शेरशाह सूरी ने यहीं से अपनी शिक्षा प्राप्त की, और मुगल बादशाह अकबर ने स्वयं यहां आकर शाही पुल के निर्माण का आदेश दिया था.
धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर
जौनपुर की धरती धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है. यहां भगवान परशुराम की जन्मस्थली मानी जाती है. इसके अलावा, सिख धर्म के नौवें गुरु, गुरु तेग बहादुर सिंह भी यहां तपस्या किया करते थे. यहां की गंगा-जमुनी तहज़ीब का एक अनूठा उदाहरण हिन्दू और मुस्लिम स्थापत्य कला का सम्मिश्रण है, जो इस शहर की इमारतों और मस्जिदों में साफ दिखाई देता है.
देखने लायक जगहें
जौनपुर में घूमने-फिरने की कई दिलचस्प जगहें हैं. यहां का शाही पुल, जिसे अकबर के समय में बनवाया गया था, आज भी अपने अद्वितीय डिजाइन और निर्माण कला के लिए प्रसिद्ध है. इसके अलावा, जौनपुर का किला, जो शाही इतिहास की झलक दिखाता है, भी प्रमुख दर्शनीय स्थल है. अटाला मस्जिद और जामा मस्जिद भी यहां की वास्तुकला के शानदार उदाहरण हैं. अगर आप धार्मिक स्थलों की खोज में हैं, तो त्रिलोचन महादेव मंदिर और शीतला चौकिया भी आपकी यात्रा को यादगार बना सकते हैं.
जौनपुर की प्रसिद्ध मिठाई: इमरती
जौनपुर की इमरती भी देश-विदेश में मशहूर है. यह मिठाई न केवल यहां के स्थानीय लोगों की पसंदीदा है, बल्कि दूर-दूर से आने वाले पर्यटक भी इसे चखने के बाद इसकी तारीफ किए बिना नहीं रह पाते.
खैर जौनपुर सिर्फ एक ऐतिहासिक स्थल नहीं है, बल्कि यह शहर भारतीय संस्कृति और धर्म का एक जीवंत उदाहरण है. यहां का हर कोना, हर इमारत और यहां की हर गली आपको इसके सुनहरे अतीत की याद दिलाएगी. चाहे आप इतिहास में रुचि रखते हों या फिर स्थापत्य कला के प्रेमी हों, जौनपुर आपको निराश नहीं करेगा. यहां की गंगा-जमुनी तहजीब, धार्मिक धरोहर और सांस्कृतिक विविधता आपको एक अलग ही दुनिया का अनुभव कराएगी.
जौनपुर की यात्रा करना सिर्फ इतिहास को जानने का मौका नहीं है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक अनुभव है, जो आपके मन-मस्तिष्क में हमेशा के लिए बस जाएगा.
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